भारत की आज़ादी की लड़ाई में गाँव से लेकर शहर तक और अमीर से लेकर गरीब तक सबने अपने अपने हिसाब और अपनी हिम्मत के साथ अपना योगदान दिया लेकिन आज अगर इधर उधर कहीं भी नज़र उठा के देखिये तो आपको ऐसा लगेगा कि पूरी आज़ादी की लड़ाई सिर्फ एक परिवार ने लड़ी हो , और उसी परिवार ने आज़ादी के बाद भारत पर अघोषित कब्ज़ा भी कर लिया ! आप उस परिवार को कांग्रेस कह सकते हैं या गांधी नेहरू परिवार कह सकते हैं ! मुझे दोनों में कोई अंतर नहीं मालुम पड़ता , शायद आपको कोई अंतर लगता हो !
पिछले सप्ताह कॉन्ग्रेसपुर दिल्ली में राजघाट सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं की समाधियाँ देखने का मौका मिला ! जितनी जगह और जितना पैसा इन पर खर्च हुआ है , एक गरीब देश भारत के लिए बहुत गंभीर बात है ! लेकिन क्यूंकि ये देश एक परिवार की जागीर रहा है तो उन्हें ये अधिकार मिल गया था कि वो जैसे चाहें जनता के पैसे का इस्तेमाल करें ! अगर इनकी समाधी बनाने का इतना ही शौक और इतना ही जरुरी था तो हर समाधि को अलग अलग बनाने की जगह एक साथ बनाया जा सकता था !
आइये इनके विषय में थोड़ा जानकारी ले लेते हैं ! राजघाट पहले पुरानी दिल्ली ( शाहजहानाबाद ) का यमुना नदी के किनारे ऐतिहासिक घाट हुआ करता था और इसी के नाम से दरयागंज के पूर्व का स्थान राजघाट गेट कहलाता था ! बाद में जब महात्मा गांधी की समाधि बनाई गयी तो इसे राजघाट नाम दे दिया गया !
महात्मा गांधी राजघाट 44. 35
जवाहर लाल नेहरू शान्तिवन 52. 60
लाल बहादुर शास्त्री विजय घाट 40 . 0
संजय गांधी ------------- --------------
इंदिरा गांधी शक्ति स्थल 45 . 0
जगजीवन राम समता स्थल 12. 5
चौ. चरण सिंह किसान घाट 19 . 0
राजीव गाँधी वीर भूमि 15. 0
ज्ञानी जैल सिंह एकता स्थल 22 . 56
और लोगों की भी समाधियाँ वहां हैं लेकिन वो सब ऐसे लोग हैं जो कभी न कभी या तो कांग्रेस के चमचे रहे हैं या फिर अपनी इज्जत ईमान सब छोड़कर सत्ता के लालच में कांग्रेस का पट्टा अपने गले में डाल कर घूमते रहे ! लेकिन मेरे कैमरे की बैटरी ख़त्म हो गयी तो मैं वापिस आ गया !
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