इस ब्लॉग को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें :
गार्डन ऑफ़ फाइव
सेंसस घूमने के लिए मुझे दो बार जाना पड़ा ! पहली बार गया तो पता पड़ा कि शाम
छह बजे तक ही खुलता है और मैंने अपनी कलाई घड़ी में देखा तो सवा छह बज रहे
थे ! मतलब आना बेकार रहा | लेकिन फिर भी इधर उधर देख कर और टिकेट की कीमत
वगैरह पता करके चला आया ! तब टिकट 20 रूपया का था , यानी 18 अप्रैल 2014 को
!
गार्डन ऑफ़ फाइव सेंसस तक पहुँचना बहुत ही आसान है , बस महरौली -बदरपुर रोड पर स्थित
साकेत मेट्रो स्टेशन पर उतरिये, उसी साइड में थोड़ा सा चलिए और ऑटो लीजिये 20
रूपये में अकेले के लिए ! पैदल चलने की शक्ति और हिम्मत है तो ज्यादा नहीं
बस 1 या डेढ़ किलोमीटर ही होगा ! मजे मजे में चलते जाइए , अफ्रीकन लडकियां
दिखती रहेंगी नए नए फैशन के कपडे पहने हुए !
वहाँ जाने का
अगला मौका मिला 2 मई 2014 को ! शुक्रवार का दिन था यानि पक्का था कि गार्डन
खुला होगा ,सोमवार को बंद रहता है ! ये गार्डन ही क्या दिल्ली के ज्यादातर
घमूने वाली जगहें सोमवार को बंद ही रहती हैं ! ये अच्छा भी है कि ज्यादातर जगहों पर लोग घूमने के लिए रविवार को जाते हैं इसलिए रविवार को सभी जगहें खुली रहतीं हैं !
कैमरा और मेट्रो कार्ड उठाया और निकल लिए गार्डन देखने , पांच
इन्द्रियों वाला बाग़ ! इस जगह को सईद उल अज़ाब गाँव के नाम से भी जाना जाता
है ! इसे दिल्ली पर्यटन निगम ने बनाया तो ये सोचकर होगा कि दिल्ली के
लोगों को घूमने , पिकनिक मनाने की बढ़िया जगह मिल जायेगी लेकिन मुझे नहीं लगता कि यहां कोई भी भला आदमी अपने बच्चों को लाता होगा घुमाने के लिए ! क्यों ? आगे पढ़ेंगे !
सन 2003 में शुरू
हुए इस गार्डन को बनाने का उद्देश्य मानव को प्रकृति को समझने और महसूस
करने के माध्यम के तौर पर रहा होगा ! पाँचों इन्द्रियों को दर्शाते चित्र
आपको दिखेंगे ! मैं दोपहर में गया था वहां ! टिकट खिड़की पर पहुंचा तो जो
टिकट 15 दिन पहले 20 रुपये का हुआ करता था वो 30 रुपये का कर दिया था ! आया हूँ तो देखूंगा जरूर !
मैंने खिड़की में हाथ डाला और उसे कहा एक टिकट देना भाई ! बोला अकेले हो ?
मैंने कहा हाँ ! उसने टिकट दे दिया , फिर दोबारा उसने पूछा अकेले ही हो ,
मैंने कहा हाँ भाई हाँ ! अकेला ही हूँ ! वो मुस्कराया , मुझे ऐसा लगा !
भीड़ बिलकुल भी नहीं थी , शायद दोपहर की वजह से और गर्मी की वजह से !
अंदर चला गया , आधा टिकट गेट पर बैठे आदमी ने फाड़ लिया और आधा मुझे पकड़ा दिया ,बोला अकेले हो ? मैंने कहाँ हाँ ! थोड़ा ही अन्दर गया होऊंगा तो धीरे धीरे सब समझ आने लगा कि
हर कोई ये क्यों पूछ रहा है - अकेले हो ? असल में मैं शायद एकमात्र आदमी या
ये कहूँ घुमक्कड़ होऊंगा जो अकेला घूम रहा था , सबके साथ अपने अपने बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड थे जो एक दूसरे को बाहों में भरे हुए घूम रहे थे !
खैर में उन दृश्यों को देखते देखते , कभी शर्माता हुआ , कभी इस कल्चर को
महसूस करता हुआ , बुदबुदाता हुआ आगे निकल मतलब के फोटो खेंच लेता ! बहुत
घना लेकिन छोटे छोटे झाड़ झंकड़ों का ये जंगल बहुत बड़ा है और मैं जैसे जैसे
इस जंगल में घुसता गया और मेरी आँखें शर्माने लगीं ! वो जो कुछ एक पति
पत्नी घर के अंदर करते हैं , मुँह पर दुपट्टा डालकर या फिर झाडी के ऊपर
दुपट्टा डालकर वो सब वो लोग कर रहे थे जिन्हें हम देश का युवा कहते हैं ,
जो एक दूसरे के बॉय फ्रेंड - गर्ल फ्रेंड होते हैं ! मैं गाँव से हूँ इसलिए
शायद ज्यादा मॉडर्न नहीं हूँ ! मैं खुद शर्मा गया ! वहां से जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही और अंदर जंगल में घुसता जाता और वहां हर जगह वो ही एक जैसे
दृश्य , जैसे आज सबको अपनी मन मर्जी करने की छूट मिली हुई हो ! आखिर में वहाँ काम
कर रहे एक मजदूर से रास्ता पूछा और तब बाहर निकलकर आया ! ओह ! तो इसलिए
वो पूछ रहे थे- अकेले हो ? और यही जवाब है ऊपर लिखे क्यों का !
आइये फोटो देखते हैं :
पत्थरों को काटकर कारीगरों ने क्या खूबसूरत नमूने गढ़े हैं , दिल से तारीफ निकलती है !