दशावतार मंदिर में ज्यादा देर नहीं लगी। ऑटो वाला बाहर ही इंतज़ार कर रहा था मेरा। बाहर आया , पानी की बोतल भरी और फिर से बैठ गया ऑटो में , चलो भाई ! जैन मंदिर चलते हैं। दशावतार मंदिर से 1 -1.5 किलोमीटर और आगे होगा जैन मंदिर। दोनों तरफ जबरदस्त हरियाली , घना जंगल और दूर से सुनाई पड़ती बेतवा नदी की आवाज। बहुत ही शांत और रमणीय स्थल। रहने -खाने की कोई सुविधा नहीं है। यहाँ तक कि चाय पीने तक के लिए कोई दुकान वगैरह नहीं है। एकदम गाँव है और अगर आप इस विचार को लेकर जा रहे हैं कि वहां कुछ ऐसा मिलेगा भी तो ऐसा मत सोचिये। प्रकृति के अद्भुत रूप और मंदिर के सिवाय कुछ नहीं हैं वहां , हाँ ! पानी मिल जायेगा !
मैं अंदर गया तो तीन -चार लड़के इधर -उधर टहलते हुए दिखे। मैं समझ गया कि कर्मचारी ही होंगे , नहीं तो कोई इतना दूर क्यों आएगा ? हाँ , मेरे जैसा पागल होगा तो वो कहीं भी चला जाएगा !! मंदिर बहुत प्राचीन लगा देखने से और उतना ही स्वच्छ भी। खूब फोटो खींचे , वीडियो बनाया और अब चल भैया वापस जाखलौन ! जाखलौन से ललितपुर !!ये जो जैन मंदिर हैं वो 8वीं या 9वीं शताब्दी के हैं। यह मंदिर किले के अन्दर और बाहर स्थित हैं। यह भव्य मंदिर खुदाई के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है और प्राचीन भारत के स्मारकों की श्रेष्ठता को दर्शाता है। मंदिर के दीवार पर सुन्दर भित्तिशिल्प बने हैं जो जैन कला और संस्कृति को दर्शाता है। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बने हैं। संग्राहालय के सर्वेक्षण से पता चला है है कि 31 जैन मंदिर का अर्थ निकाला गया है। यह सारे मंदिर इस जगह पर बने हिन्दू मंदिरों के बाद बने हैं। उस समय के अनुसार जब यह बने थे इनको दो समय काल में बांटा गया है: शुरूआती मध्यकालीन काल और मध्यकालीन काल।
ललितपुर लौटकर उसी होटल में खाना खाया लेकिन इस बार जबरदस्ती पैसे दिए उन्हें। 5 दिसंबर थी 2019 की। खाना खाके मैं सामने ही दिख रहे ललितपुर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में पहुँच गया। मेरी ट्रेन का निर्धारित समय साढ़े आठ बजे का था , हालाँकि वो आई 12 बजे के बाद । लेकिन इस दरम्यान मेरी हालत खराब रही और क्या क्या झेलना पड़ा वो बताता हूँ। 5 दिसंबर था और हल्की हल्की ठंड थी। स्वेटर डाल के बैग को कंधे के नीचे लगाया और आराम करने लगा। ....... थका हुआ शरीर था , कब आँख लग गई ! पता ही नहीं चला ! पता तब चला जब छह सात पोलिसकर्मी मुझे जगा रहे थे :) मेरा बैग चेक हुआ , एक -एक सामान चेक हुआ। पूरी पूछताछ हुई। जाते -जाते हड़का के गए। छह बजे होंगे उस वक्त। बैग लटकाया और बाहर निकल आया। चाय पी और आमलेट खाने लगा। पुलिस का दस्ता चला आ रहा था रोड पर ! आमलेट वाले ने डर के अपना ठेला पीछे की तरफ सरका लिया। मैंने ऐवें ही पूछ लिया -तू क्यों डर गया ? अरे कल 6 दिसंबर है उस चक्कर में ज्यादा ही पुलिस की चहलपहल है। मेरा माथा ठनका !! अरे हाँ !! कल विजय दिवस है और कुछ के लिए काला दिवस। अब असली बात समझ आई लेकिन तब तक सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला दे चुका था लेकिन कुछ लोगों की चुल्लु हमेशा हिलोरें मारती रहती है। अभी खतरा टला नहीं , उधर का तो टल गया मेरा नहीं टला ! मैं फिर से उसी प्रतीक्षालय में , उसी सीट पर आकर बैठ गया। आधा घंटा बैठा होऊंगा और फिर बैग छोड़ के इधर -उधर घूमने लगा। इस इधर -उधर में खाली पड़े प्लेटफार्म पर जाकर आती जाती ट्रेनों को देखता रहा , बच्चे की तरह। और उधर -मेरा बैग फिर से चेक हो रहा था किसी मेटल डिटेक्टर से। बैग में पावर बैंक , कैमरा , छोटा चाक़ू , चैन जाने क्या क्या था और मेटल डिटेक्टर कांय -कांय किये जा रहा था। जोर -जोर की आवाज आ रही थी -किसका बैग है ये ? बताओ किसका बैग है ये ? और हम मजे से प्लेटफार्म पर ट्रेन गिन रहे थे। आवाज सुनकर प्रतीक्षालय की तरफ लौटा तो देखा -मेरा ही बैग है !! और इस बार पुलिस के साथ -साथ ब्लैक यूनिफार्म वाले चार कमांडो भी हैं। और तो और वो पोलिस अफसर भी साथ हैं जो कुछ घंटे पहले ही मुझे हड़का के गए थे। अब लग गई लंका !!
भयंकर डांट पड़ी !! गनीमत रही कि सुताई नहीं हुई। कैमरा चेक किया , फोटो चेक किये ! फ़ोन चेक किया , कांटेक्ट चेक किये और Recent Calls चेक किये। आधार कार्ड चेक हुआ , whats app की चैट चेक हुई। मुझे लगा -आज गया मैं अंदर ! Recent calls में Home मिला। किसका नंबर है ये -मेरी वाइफ का है !! OK !! कॉल करो और फ़ोन को स्पीकर पर लगाओ !! बात हुई , वो संतुष्ट हुए और एक बढ़िया सी डोज़ देके चले गए।
झांसी -इटारसी पैसेंजर ट्रेन 12 बजे के बाद ही आई। करीब पांच घंटे लेट और मैं चल दिया विदिशा लेकिन नींद का कच्चा आदमी , विदिशा की टिकट लेकर भोपाल पहुँच गया बिना टिकट ही। बाकी बातें अगले ब्लॉग में .....
यहाँ नहीं जा पाया मैं
लौट के बुद्धू घर को .......न न ललितपुर स्टेशन आये :)