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ग्वालियर -मुरैना -दतिया भले ही चम्बल का क्षेत्र हो , कभी खतरनाक माना जाता रहा हो लेकिन ट्रेन से जाते हुए इसकी खूबसूरती को लगातार निहारते रहने का मन करता है। आप इसे मेरा सौभाग्य कह सकते हैं कि मुझे इस जगह को बेहतरीन रूप में पहले भी देखने और घूमने का मौका मिलता रहा है। सजीव ग्रीन और खूबसूरत मैदानों -खेतों को देखकर आप एकबारगी भी नहीं कह सकते कि ये जगह कभी दुर्दांत डकैतों का क्षेत्र रही है !
लेकिन बदला है दतिया में ! बहुत कुछ बदला है। दतिया स्टेशन से सीधे पीताम्बरा पीठ पहुंचा तो वहां का नजारा इन 20 सालों में बहुत बदल चुका है। पहले हम झाँसी से आते थे दतिया और खूब खुले दर्शन करके लौट जाते थे अपने हॉस्टल लेकिन अब ! फ़ोन -कैमरा बाहर रखिये ! जूते बाहर रखिये ! पर्ची कटाइये फ़ोन -कैमरा रखने की। जांच कराइये गेट पर। फोटो लेने की तो गुंजाईश ही नहीं रही। खैर ! मैं मानता हूँ ये सब मंदिर की सुरक्षा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए जरुरी भी है। लेकिन ... मैं चाहता था कि सोनागिरि भी घूम आया जाये वक्त मिल तो किन्तु बैग मंदिर के बाहर के स्टोर में केवल पांच बजे तक रखने की हिदायत दे दी भाईसाब ने ! अब ? किसी दुकान पर रख दिया जाए ? इतना बड़ा और भारी बैग लेकर परेशान होने से बेहतर है कहीं रख दिया जाए ! याद आया -राजीव कनकने जी के बारे में ! उन्हें फ़ोन करता हूँ शायद कोई बात बन जाए ! राजीव जी से पहले कभी बात नहीं हुई थी लेकिन उनका नंबर मेरे पास था। दतिया बहुत बड़ा शहर नहीं है इसलिए राजीव जी को मेरे पास तक पहुँचने में 10 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगा था। मेरी समस्या का समाधान हो गया था। धन्यवाद राजीव कनकने जी !! रात 9 बजे तक बैग सुरक्षित रखवा दिया राजीव जी तो हम निकल चले माँ पीताम्बरा के दर्शन के लिए और राजीव जी वापस चले गए तहसील , जहाँ उन्हें आज कोई रजिस्ट्री करानी थी।
और फिर नेहरू जी के बहुत दबाव डालने पर नेहरू जी ने , नेहरू जी की ख़ुशी के लिए नेहरू जी की बात मान ली और नेहरू जी को नेहरू जी ने भारत रत्न प्रदान करने की सिफारिश नेहरू जी से कर दी। महान राजनीतिक लोगों का देश रहा है भारत !!
मिलते हैं जल्दी ही फिर जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना
पीताम्बरा पीठ : दतिया
04-Dec-2019
कल का दिन लगभग सुबह 9 बजे से रात 12 बजे तक व्यस्त रहा था। आखिरी जगह सूर्य मंदिर के दर्शन करने के बाद मैं और जैन साब , मित्रवर विकास के साथ उनके कार्यस्थल पर पहुँच गए थे वहां से फिर उनके छोटे भाई शोभित के फ्लैट पर पहुंचे और खाना खा के निवृत होने में 12 बज चुके थे। हाँ इस दरम्यान नवोदित फिल्म कलाकार "कार्तिक आर्यन" का घर जरूर दिखाया शोभित ने लेकिन फिल्मों और फ़िल्मी कलाकारों से कोई लगाव नहीं है तो उसकी कोई बात नहीं।
सुबह जागते -जागते देर हो गयी जिसका परिणाम ये हुआ कि आगरा -झाँसी पैसेंजर ट्रेन निकल चुकी थी। धत तेरे की !! अब ग्वालियर -दतिया खण्ड पर पैसेंजर से यात्रा करने का मौका फिर से निकल गया। सोना अच्छी आदात है लेकिन बेफिक्र सोना ... रात में 12 के बाद आदमी सोयेगा तो जल्दी कैसे जगेगा ? ग्वालियर स्टेशन पहुँचते पहुँचते 10 बज गए। हालाँकि शाम को एक और पैसेंजर ट्रेन है जो आगरा से झाँसी जाती है लेकिन उससे मेरा पूरा दिन खराब हो जाता इसलिए जो भी ट्रेन मिलेगी , दतिया निकल लेंगे। ग्वालियर -बरौनी एक्सप्रेस मिल गयी जो 12 बजे निकल के करीब डेढ़ बजे के आसपास दतिया पहुँच गयी थी। रास्ते में डबरा -सोनागिरि जैसे जाने -पहचाने स्टेशन आते गए निकलते गए। कभी बहुत क्रेज रहता था इन स्टेशनों का , जब हॉस्टल में था झाँसी . मेरी दाढ़ी काली से सफ़ेद होने लगी लेकिन इन स्टेशनों का कुछ नहीं बदला। सब कुछ ज्यों का त्यों !! छोटे छोटे समोसे और वही पाउडर वाली चाय। कुछ चीजें कभी नहीं बदलती और न भी बदलें तो भी क्या बुराई है ? पहिचान बन चुकी होती हैं !!
यहाँ से यात्रा शुरू हुई है आज की ! |
ग्वालियर -मुरैना -दतिया भले ही चम्बल का क्षेत्र हो , कभी खतरनाक माना जाता रहा हो लेकिन ट्रेन से जाते हुए इसकी खूबसूरती को लगातार निहारते रहने का मन करता है। आप इसे मेरा सौभाग्य कह सकते हैं कि मुझे इस जगह को बेहतरीन रूप में पहले भी देखने और घूमने का मौका मिलता रहा है। सजीव ग्रीन और खूबसूरत मैदानों -खेतों को देखकर आप एकबारगी भी नहीं कह सकते कि ये जगह कभी दुर्दांत डकैतों का क्षेत्र रही है !
ये छोटी लाइन वाली गाडी है जो ग्वालियर से श्योपुर तक जाती है। जल्दी ही इसमें बैठने और यात्रा करने का मन है ...... |
लेकिन बदला है दतिया में ! बहुत कुछ बदला है। दतिया स्टेशन से सीधे पीताम्बरा पीठ पहुंचा तो वहां का नजारा इन 20 सालों में बहुत बदल चुका है। पहले हम झाँसी से आते थे दतिया और खूब खुले दर्शन करके लौट जाते थे अपने हॉस्टल लेकिन अब ! फ़ोन -कैमरा बाहर रखिये ! जूते बाहर रखिये ! पर्ची कटाइये फ़ोन -कैमरा रखने की। जांच कराइये गेट पर। फोटो लेने की तो गुंजाईश ही नहीं रही। खैर ! मैं मानता हूँ ये सब मंदिर की सुरक्षा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए जरुरी भी है। लेकिन ... मैं चाहता था कि सोनागिरि भी घूम आया जाये वक्त मिल तो किन्तु बैग मंदिर के बाहर के स्टोर में केवल पांच बजे तक रखने की हिदायत दे दी भाईसाब ने ! अब ? किसी दुकान पर रख दिया जाए ? इतना बड़ा और भारी बैग लेकर परेशान होने से बेहतर है कहीं रख दिया जाए ! याद आया -राजीव कनकने जी के बारे में ! उन्हें फ़ोन करता हूँ शायद कोई बात बन जाए ! राजीव जी से पहले कभी बात नहीं हुई थी लेकिन उनका नंबर मेरे पास था। दतिया बहुत बड़ा शहर नहीं है इसलिए राजीव जी को मेरे पास तक पहुँचने में 10 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगा था। मेरी समस्या का समाधान हो गया था। धन्यवाद राजीव कनकने जी !! रात 9 बजे तक बैग सुरक्षित रखवा दिया राजीव जी तो हम निकल चले माँ पीताम्बरा के दर्शन के लिए और राजीव जी वापस चले गए तहसील , जहाँ उन्हें आज कोई रजिस्ट्री करानी थी।
हरा भरा चम्बल आकर्षित करता है
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यहाँ मंदिर से दर्शन करके कुछ खाया पिया और फिर सोचा कि कहाँ जाया जाए ? दतिया महल या पहले सोनागिरि ? खुद ही खुद से सवाल किया और खुद ही खुद को जवाब दिया - पहले दतिया पैलेस चलते हैं। ये खुद से खुद वाला कांसेप्ट नया नहीं है , 1955 में ऐसे ही एक बार नेहरू जी ने खुद से पूछा था :
नेहरू जी नेहरू से - भारत रत्न लोगे आप ?
नेहरू , नेहरू जी से : क्या करना लेके ?
नेहरू जी नेहरू से - ले लो !
नेहरू नेहरू जी से - दे दो ! अगर ऐसा है तो !
पीताम्बरा मंदिर का प्रवेश द्वार |
ये क्या है ? मुझे नहीं मालूम कोई बताइयेगा |
ये दतिया है .... |
ये दतिया पैलेस है। चलेंगे यहाँ भी ......
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मिलते हैं जल्दी ही फिर जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना