DOJ : October -2018
बैजनाथ मंदिर के सुन्दर दर्शन करने के बाद अगली मंजिल चामुण्डा माता के दर्शन की थी। मंदिर के पास ही बस स्टैंड है और जिस बस से पालमपुर से यहाँ आये थे उसी से वापस हो लिए। ड्राइवर बस स्टैंड में से बस बाहर निकाल रहा था और हम पास के ही रेस्टोरेंट से अपना सामान उठा रहे थे , उसने हमें देख लिया होगा तो जोर से पूछने लगा ? वापस जाओगे क्या ? बिल्कुल जाएंगे भाई ! वो भी खुश और हम भी खुश ! खुश रहने का पैसा थोड़े ही लगता है ? पालमपुर में रुकने -घूमने का कोई विचार नहीं था इसलिए एक डेढ़ घंटे की बैजनाथ -पालमपुर की सड़क यात्रा संपन्न होते ही पालमपुर से धर्मशाला की बस पकड़ ली। धर्मशाला से करीब 12 -13 किमी पहले ही चामुंडा माता का मंदिर है जो समुद्र तल से करीब 1000 मीटर की ऊंचाई पर है। ये मंदिर भी कांगड़ा जिले में आता है। मंदिर के मुख्य गेट के पास बस से उतरते -उतरते सात -साढ़े सात बज गए थे और अँधेरा घिर आया था। थोड़ी ठण्ड थी क्यूंकि अक्टूबर का महीना था। कुछ चाय -पानी हो जाए पहले ! मंदिर के मुख्य प्रवेश के पास ही चार -पांच बढ़िया रेस्टोरेंट हैं , जहाँ खाना -नाश्ता मिल जाता है। हल्की सी पेट पूजा करके अब ज़रा होटल -रुकने की व्यवस्था देखी जाए !
बच्चों को रेस्टोरेंट में ही छोड़कर आसपास के होटल देखे , मेरे बजट से महंगे थे। महंगे होंगे ही , ये आलिशान बिल्डिंग जो बनाई हुई हैं लेकिन ये मेरे जैसे के लिए नहीं हैं। मैं होटल लेते समय उसकी बिल्डिंग कभी नहीं देखता बल्कि मुझे मिलने वाली बेसिक सुविधाएं देखता हूँ - जैसे सुबह की चाय छह बजे देनी होगी ! सर्दियों का मौसम है तो गीजर होना चाहिए या गरम पानी लाकर दे दे और सफाई। बस और मुझे क्या चाहिए ? टीवी नहीं चाहिए , फ़ोन नहीं चाहिए ? क्यों चाहिए आखिर ? इनसे बचने के लिए ही तो घूमता हूँ बच्चों के साथ और इन्हें ही साथ रखूँगा तो क्या फायदा ? ऐसे मौकों पर हम सब चारों अपना -अपना "टैलेंट" दिखा लेते हैं। खैर एक धर्मशाला मिली , रूम भी मिला गीजर सहित लेकिन एक शर्त पर सुबह 8 बजे तक खाली करना पड़ेगा क्यूंकि उस धर्मशाला में अगले दिन कोई शादी थी। मिला कितने का ? 300 रूपये का ! लेकिन बाद में लोचा हुआ इसमें और क्या लोचा हुआ वो बाद में बात करते हैं। तो जी आठ बजे करीब दर्शन को पहुँच गए माँ चामुंडा के दर पे और गिनती के लोग ही आते -जाते दिख रहे थे। अचानक हमारे ही कॉलेज के एक प्रोफेसर अपनी धर्मपत्नी के साथ आते हुए दिखे , नमस्कार हुई ! बात हुई फिर वो धर्मशाला की तरफ और हम मंदिर में अंदर की तरफ। बहुत ही सुलभ दर्शन हुए और खूब समय गुजारने का अवसर मिला मंदिर में। चामुंडा मंदिर के पास ही बाण गंगा नदी बहती है और ऐसा माना जाता है कि चामुण्डा माता के दर्शन , बाणगंगा में स्नान के बाद ही करने चाहिए लेकिन इतनी ठण्ड में और रात में न स्नान का कोई तुक था और न हमें पता था ! हिन्दू होना मुझे इसीलिए गर्व का एहसास कराता है क्योंकि आप कुछ चीजें अपने हिसाब से भी कर सकते हैं , इतनी छूट मिलती है और बिना नहाये दर्शन करने से मेरा "हिंदुत्व " खतरे में नहीं आएगा। चामुण्डा मंदिर सहित अब हम हिमाचल की पांच देवियों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं। कांगड़ा देवी मंदिर , ज्वाला जी मंदिर , चिंतपूर्णी मंदिर , बगुलामुखी मंदिर और अब चामुंडा मंदिर दर्शन ! धन्य हुए हम !!
अगली सुबह धर्मशाला में चिल्ल -पों ने जल्दी ही नींद खोल दी। जिस परिवार की यहाँ शादी थी , उस परिवार के बहुत से सदस्य रात को ही यहाँ आ गए थे और भीड़ हो गयी थी जिसके कारण "माहौल " बन गया था। चाय मिल गयी तो शरीर एक्टिव हुआ और फिर सुबह साढ़े सात बजे झोला -डण्डा उठाकर मैनेजर के रूम में चाभी और किराया देने पहुंचे। रात जो आदमी यहाँ था , उसकी जगह अब कोई दूसरा व्यक्ति वहां बैठा था। पांच सौ का नोट थमाया और उसने हमें आधिकारिक रूप से Check Out कर दिया लेकिन बाकी के 200 रूपये नहीं लौटाए ! मैंने पूछा -क्यों ? बोला , 500 रूपये का ही था किराया। खूब बहस हुई। .. मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकता था मुझे कोई दिक्कत नहीं थी अगर उसने 500 किराया कल ही बताया होता ! लेकिन 300 रुपया बताकर 500 रुपया लेना गलत था और अब हमें वापस चाहिए थे बचे हुए पैसे। आखिर उस आदमी को , जो रात यहाँ था , उसे बुलाया गया और हमें 200 रूपये वापस मिले। अब आज की मंजिल धर्मशाला से निकलकर धर्मशाला और मैक्लॉडगंज की तरफ थी। यहाँ से 12 -13 किमी होगा धर्मशाला और बाहर निकलते ही लगभग पांच मिनट के अंदर ही हमें हिमाचल रोडवेज की बस मिल गयी। अगले एक घंटे में हम एक छोटे , शांत , अत्यंत खूबसूरत शहर और जाने -माने हिल स्टेशन "धर्मशाला " की सड़कों से होते हुए वहां के बस स्टैंड में प्रवेश कर चुके थे। सर्दियों में ये शहर और भी खूबसूरत हो जाता है जैसे किसी नवयौवना ने सौलह श्रृंगार कर लिए हों ! आज सोलह श्रृंगार तो नहीं थे धर्मशाला के लेकिन छह -सात तो करे ही होंगे ! काजल -बिंदी -लिपिस्टिक -नेल पोलिश तो आज भी लगाईं ही होगी। लेकिन अभी धर्मशाला को हमारा और थोड़ा सा इंतज़ार करने दो , पहले मैक्लॉडगंज चलते हैं। हर 15 मिनट में धर्मशाला से मैक्लॉडगंज के लिए बस मिल जाती है। धर्मशाला के बस स्टैंड में ही 20 -30 रूपये में सामान रखा और मैक्लॉडगंज की बस ले ली। इतना सामान लेकर चलने की जरुरत ही क्या है जब शाम तक हमें यहीं वापस लौटना है !
धर्मशाला से मक्लॉडगंज का रास्ता सच में बेहद खूबसूरत है। हरे -भरे पहाड़ों के ऊपर चमकती बर्फ राजा के सिंहासन में लगे मुकुट की मानिंद जब चमकती है तो उसे हाथ बढ़ाकर छू लेने और महसूस कर लेने का किसका मन नहीं होगा। और प्रकृति का असली आनंद , असली स्वाद भी तो इसी में है कि आप जिस प्रकृति का आनंद आज उठा पा रहे हैं , कल आपके बच्चे उस आनंद को जी पाएं , इसके लिए जरुरी है ये संवेदना भी बनी रहे कि आप प्रकृति को जितना चाहें चूमें , आनंद लें , महसूस करें लेकिन उसका सत्यानाश न करें। प्रकृति को प्रेमिका के रूप में देखिये , उसका इश्क़ , उसकी मौजूदगी , उसकी आँखों की भाषा को समझिये आपको परम आनंद आएगा लेकिन जैसे ही आप प्रेमिका पर टूट पड़ेंगे , आपको क्षणिक स्वाद तो निश्चित रूप से आएगा लेकिन संभव है आपको या आपकी अगली पीढ़ी को भारी पड़ जाए। अगली पीढ़ी दूर की बात है , इसी पीढ़ी को भारी पड़ने लगा है जिसका नजारा मैक्लोडगंज की सडकों पर रेंगती गाड़ियां और भौं -भौं करते कुत्ते की आवाजें निकालती हुई गाड़ियों की रेलम पेल दिखी। हर सड़क ठसाठस भरी हुई , जैसे आज ही का दिन आखरी है सबकी जिंदगी का। ऐसी जगहों को तो बख्श दो हे रहीसों की औलादो ! कभी -कभी सार्वजनिक परिवहन की सुविधा का उपयोग करेंगे तो कोई औकात नहीं खराब होगी तुम्हारी ! बख्श दो मेरे भाई ! प्रकृति को तो कम से कम बख्श दो !!
मैक्लॉडगंज की संकरी सडकों पर भीड़ के मारे बच्चों के साथ पैदल चल पाना भी मुश्किल हो रहा था तब इस भीड़ की चिराँध से बचने के लिए थोड़ी देर बैठकर चाय -परांठा खा लेना ही बेहतर विकल्प नजर आ रहा था। परांठा जो दिल्ली में 20 -25 में मिल जाता है वो 80 रूपये का दिया साले ने ! मैं उसे श्राप देकर आया मन ही मन में -जा तेरे चार परांठे जल जाएँ और तेरा रायता कल सुबह तक खराब हो जाए !! तूने एक पंडित से ज्यादा पैसे लिए हैं , जा ! तेरे बाथरूम से तेरा नहाने का मग गायब हो जाए ! पता नहीं उस पर मेरे श्रापों का कोई असर हुआ या नहीं !!
मैक्लोडगंज सुन्दर है ! बेशक ! लेकिन शहर से बाहर ! अंदर भीड़ बहुत होती है इसलिए सुंदरता , भीड़ के घूंघट में छुप जाती है। हमें तो बस भृगु मंदिर और भागसूनाग फॉल देखना था और लौटते हुए दलाईलामा का मंदिर। पैदल ही रास्ता नापना शुरू कर दिया। एक -डेढ़ किलोमीटर तो होगा भृगु मंदिर बस स्टैंड से। बाजार से होते हुए चलते गए। रास्ते में एक अँगरेज़ भाईसाब खड़े खड़े गिटार बजा रहे थे और पैसे मांग रहे थे ( माँगना गलत शब्द होगा -कमा रहे थे ) ! माँगना तो भारतीयों के साथ लगाया जाता है न ? वो अँगरेज़ था , उसकी चमड़ी गोरी थी इसलिए वो अँगरेज़ था या अँगरेज़ था इसलिए उसकी चमड़ी गोरी थी ? वो आप जानो !! लेकिन अँगरेज़ गिटार बजा रहा है तो हमें दरियादिली दिखानी ही होती है इसलिए वहां 100 -100 के नोट भी उसे देने में न हिचक न सिद्धांत। उसे भिखारी भी नहीं कहेंगे , भिखारी शब्द तो भारतीय के साथ लगाएंगे न !! उसे तो कलाकार कहा जाएगा कलाकार !! क्योंकि वो अँगरेज़ है और उसकी चमड़ी गोरी है ! उसे भिखारी कैसे कहेंगे ? है न !! भिखारी उसे कहते हैं जिसे एक रुपया देते हुए भी हम पचास गालियां दें !! ये तो कलाकार है ! कलाकार !! यू ब्लडी इण्डियन पीपल कांट अंडरस्टैंड थिस थ्योरी ऑफ़ थिंकिंग ! यू ....यू.. कांट डिफ़्फरेंशिएट बिटवीन अ भिखारी एंड ए कलाकार !! यू कॉमन पीपल विल नेवर अंडरस्टैंड दिस !!
भृगु मंदिर चल दिए और आधा घण्टा गुजार के भागसूनाग फॉल चलते हैं। करीब डेढ़ -दो किलोमीटर पैदल पक्का रास्ता है। आप ना भी जाना चाहें तो मंदिर के पास से भी दिखाई देता है ये फॉल लेकिन मैं कहूंगा जाना चाहिए। आराम आराम से हल्की -हल्की चढ़ाई चढ़ते हुए एक घंटे में फॉल तक पहुँच जाएंगे। फॉल उन लोगों को बहुत अच्छा लग सकता है जिन्होंने इससे पहले कोई फॉल नहीं देखा लेकिन क्यूंकि मैंने बहुत सारे और इससे कई गुना बड़े और भी फॉल देखे हैं तो मुझे कुछ ख़ास पसंद नहीं आया लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल नहीं कि फॉल अच्छा नहीं है ! खूबसूरत है और मैक्लोडगंज का फेमस आकर्षण है।
फॉल से लौटते हुए दलाईलामा मंदिर पहुँच गए जो मैक्लोडगंज में धर्मशाला की तरफ से घुसते ही एक नीचे की तरफ जा रही रोड पर है जबकि भागसूनाग फॉल तक जाने के लिए आपको पूरा टाउन पार करके जाना पड़ता है। दलाईलामा मंदिर की तरफ जो रोड जा रही है उसके दोनों तरफ दुकानें हैं। मुझे लगता है ये दुकानें सिर्फ विदेशियों के लिए ही बनी हैं। 100 खरीददारों में से शायद ही कोई इंडियन होगा उन दुकानों में। अगर कोई भारतीय वहां था भी तो वो बस रंगीन चश्मा या हैट के ही दाम -कीमत पूछना चाहता था। जबकि वहां बुद्ध , गणेश सब बिकने के लिए रखे थे। बिकेंगे , झाड़ पौंछकर ड्रेसिंग रूम में सजेंगे। सही जगह बिठाया जा रहा है भगवान को !!
तीन बजने को हैं तो अब धर्मशाला के लिए निकल चलो। बस पकड़ी और साढ़े चार बजे धर्मशाला के बस स्टैंड से अपना सामान उठाते हुए हिमाचल के एकमात्र स्टेडियम और धर्मशाला के बेहद खूबसूरत आकर्षण क्रिकेट स्टेडियम को देखने दौड़ चले। टिकट लगता है यार उसमें अंदर जाने के लिए। याद नहीं 40 का था या 50 रूपये का। एक ही स्टैंड पब्लिक के लिए खोला गया है जिसकी सीटें टूटी पड़ी हैं। पवेलियन को दूर से देख सकते हैं लेकिन अगर आप वहां हैं और धर्मशाला घूमने गए हैं तो ये जगह जरूर देखिएगा। बहुत ही खूबसूरत स्टेडियम बना है। मैच भले ही कम होते हैं लेकिन परिवार के साथ यहाँ बैठना अच्छा लगेगा।
धर्मशाला से निकलने में ही फायदा है क्यूंकि हमारी ट्रेन है पठानकोट से आज ही रात को ! तो हिमाचल की ये दूसरी यात्रा आज समाप्त करते हैं इस वायदे के साथ कि फिर मिलेंगे जल्दी ही कोई और - कहानी लेकर !! तब तक सभी मित्रों को जय राम जी की !! और चंद्रयान -2 के चन्द्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरने की बहुत बहुत शुभकामनाएं !! जय हिन्द !!
बच्चों को रेस्टोरेंट में ही छोड़कर आसपास के होटल देखे , मेरे बजट से महंगे थे। महंगे होंगे ही , ये आलिशान बिल्डिंग जो बनाई हुई हैं लेकिन ये मेरे जैसे के लिए नहीं हैं। मैं होटल लेते समय उसकी बिल्डिंग कभी नहीं देखता बल्कि मुझे मिलने वाली बेसिक सुविधाएं देखता हूँ - जैसे सुबह की चाय छह बजे देनी होगी ! सर्दियों का मौसम है तो गीजर होना चाहिए या गरम पानी लाकर दे दे और सफाई। बस और मुझे क्या चाहिए ? टीवी नहीं चाहिए , फ़ोन नहीं चाहिए ? क्यों चाहिए आखिर ? इनसे बचने के लिए ही तो घूमता हूँ बच्चों के साथ और इन्हें ही साथ रखूँगा तो क्या फायदा ? ऐसे मौकों पर हम सब चारों अपना -अपना "टैलेंट" दिखा लेते हैं। खैर एक धर्मशाला मिली , रूम भी मिला गीजर सहित लेकिन एक शर्त पर सुबह 8 बजे तक खाली करना पड़ेगा क्यूंकि उस धर्मशाला में अगले दिन कोई शादी थी। मिला कितने का ? 300 रूपये का ! लेकिन बाद में लोचा हुआ इसमें और क्या लोचा हुआ वो बाद में बात करते हैं। तो जी आठ बजे करीब दर्शन को पहुँच गए माँ चामुंडा के दर पे और गिनती के लोग ही आते -जाते दिख रहे थे। अचानक हमारे ही कॉलेज के एक प्रोफेसर अपनी धर्मपत्नी के साथ आते हुए दिखे , नमस्कार हुई ! बात हुई फिर वो धर्मशाला की तरफ और हम मंदिर में अंदर की तरफ। बहुत ही सुलभ दर्शन हुए और खूब समय गुजारने का अवसर मिला मंदिर में। चामुंडा मंदिर के पास ही बाण गंगा नदी बहती है और ऐसा माना जाता है कि चामुण्डा माता के दर्शन , बाणगंगा में स्नान के बाद ही करने चाहिए लेकिन इतनी ठण्ड में और रात में न स्नान का कोई तुक था और न हमें पता था ! हिन्दू होना मुझे इसीलिए गर्व का एहसास कराता है क्योंकि आप कुछ चीजें अपने हिसाब से भी कर सकते हैं , इतनी छूट मिलती है और बिना नहाये दर्शन करने से मेरा "हिंदुत्व " खतरे में नहीं आएगा। चामुण्डा मंदिर सहित अब हम हिमाचल की पांच देवियों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं। कांगड़ा देवी मंदिर , ज्वाला जी मंदिर , चिंतपूर्णी मंदिर , बगुलामुखी मंदिर और अब चामुंडा मंदिर दर्शन ! धन्य हुए हम !!
Masroor Rock Temple : Kangda
अगली सुबह धर्मशाला में चिल्ल -पों ने जल्दी ही नींद खोल दी। जिस परिवार की यहाँ शादी थी , उस परिवार के बहुत से सदस्य रात को ही यहाँ आ गए थे और भीड़ हो गयी थी जिसके कारण "माहौल " बन गया था। चाय मिल गयी तो शरीर एक्टिव हुआ और फिर सुबह साढ़े सात बजे झोला -डण्डा उठाकर मैनेजर के रूम में चाभी और किराया देने पहुंचे। रात जो आदमी यहाँ था , उसकी जगह अब कोई दूसरा व्यक्ति वहां बैठा था। पांच सौ का नोट थमाया और उसने हमें आधिकारिक रूप से Check Out कर दिया लेकिन बाकी के 200 रूपये नहीं लौटाए ! मैंने पूछा -क्यों ? बोला , 500 रूपये का ही था किराया। खूब बहस हुई। .. मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकता था मुझे कोई दिक्कत नहीं थी अगर उसने 500 किराया कल ही बताया होता ! लेकिन 300 रुपया बताकर 500 रुपया लेना गलत था और अब हमें वापस चाहिए थे बचे हुए पैसे। आखिर उस आदमी को , जो रात यहाँ था , उसे बुलाया गया और हमें 200 रूपये वापस मिले। अब आज की मंजिल धर्मशाला से निकलकर धर्मशाला और मैक्लॉडगंज की तरफ थी। यहाँ से 12 -13 किमी होगा धर्मशाला और बाहर निकलते ही लगभग पांच मिनट के अंदर ही हमें हिमाचल रोडवेज की बस मिल गयी। अगले एक घंटे में हम एक छोटे , शांत , अत्यंत खूबसूरत शहर और जाने -माने हिल स्टेशन "धर्मशाला " की सड़कों से होते हुए वहां के बस स्टैंड में प्रवेश कर चुके थे। सर्दियों में ये शहर और भी खूबसूरत हो जाता है जैसे किसी नवयौवना ने सौलह श्रृंगार कर लिए हों ! आज सोलह श्रृंगार तो नहीं थे धर्मशाला के लेकिन छह -सात तो करे ही होंगे ! काजल -बिंदी -लिपिस्टिक -नेल पोलिश तो आज भी लगाईं ही होगी। लेकिन अभी धर्मशाला को हमारा और थोड़ा सा इंतज़ार करने दो , पहले मैक्लॉडगंज चलते हैं। हर 15 मिनट में धर्मशाला से मैक्लॉडगंज के लिए बस मिल जाती है। धर्मशाला के बस स्टैंड में ही 20 -30 रूपये में सामान रखा और मैक्लॉडगंज की बस ले ली। इतना सामान लेकर चलने की जरुरत ही क्या है जब शाम तक हमें यहीं वापस लौटना है !
Baijnath Shiva Temple : Himachal Pradesh
धर्मशाला से मक्लॉडगंज का रास्ता सच में बेहद खूबसूरत है। हरे -भरे पहाड़ों के ऊपर चमकती बर्फ राजा के सिंहासन में लगे मुकुट की मानिंद जब चमकती है तो उसे हाथ बढ़ाकर छू लेने और महसूस कर लेने का किसका मन नहीं होगा। और प्रकृति का असली आनंद , असली स्वाद भी तो इसी में है कि आप जिस प्रकृति का आनंद आज उठा पा रहे हैं , कल आपके बच्चे उस आनंद को जी पाएं , इसके लिए जरुरी है ये संवेदना भी बनी रहे कि आप प्रकृति को जितना चाहें चूमें , आनंद लें , महसूस करें लेकिन उसका सत्यानाश न करें। प्रकृति को प्रेमिका के रूप में देखिये , उसका इश्क़ , उसकी मौजूदगी , उसकी आँखों की भाषा को समझिये आपको परम आनंद आएगा लेकिन जैसे ही आप प्रेमिका पर टूट पड़ेंगे , आपको क्षणिक स्वाद तो निश्चित रूप से आएगा लेकिन संभव है आपको या आपकी अगली पीढ़ी को भारी पड़ जाए। अगली पीढ़ी दूर की बात है , इसी पीढ़ी को भारी पड़ने लगा है जिसका नजारा मैक्लोडगंज की सडकों पर रेंगती गाड़ियां और भौं -भौं करते कुत्ते की आवाजें निकालती हुई गाड़ियों की रेलम पेल दिखी। हर सड़क ठसाठस भरी हुई , जैसे आज ही का दिन आखरी है सबकी जिंदगी का। ऐसी जगहों को तो बख्श दो हे रहीसों की औलादो ! कभी -कभी सार्वजनिक परिवहन की सुविधा का उपयोग करेंगे तो कोई औकात नहीं खराब होगी तुम्हारी ! बख्श दो मेरे भाई ! प्रकृति को तो कम से कम बख्श दो !!
मैक्लॉडगंज की संकरी सडकों पर भीड़ के मारे बच्चों के साथ पैदल चल पाना भी मुश्किल हो रहा था तब इस भीड़ की चिराँध से बचने के लिए थोड़ी देर बैठकर चाय -परांठा खा लेना ही बेहतर विकल्प नजर आ रहा था। परांठा जो दिल्ली में 20 -25 में मिल जाता है वो 80 रूपये का दिया साले ने ! मैं उसे श्राप देकर आया मन ही मन में -जा तेरे चार परांठे जल जाएँ और तेरा रायता कल सुबह तक खराब हो जाए !! तूने एक पंडित से ज्यादा पैसे लिए हैं , जा ! तेरे बाथरूम से तेरा नहाने का मग गायब हो जाए ! पता नहीं उस पर मेरे श्रापों का कोई असर हुआ या नहीं !!
मैक्लोडगंज सुन्दर है ! बेशक ! लेकिन शहर से बाहर ! अंदर भीड़ बहुत होती है इसलिए सुंदरता , भीड़ के घूंघट में छुप जाती है। हमें तो बस भृगु मंदिर और भागसूनाग फॉल देखना था और लौटते हुए दलाईलामा का मंदिर। पैदल ही रास्ता नापना शुरू कर दिया। एक -डेढ़ किलोमीटर तो होगा भृगु मंदिर बस स्टैंड से। बाजार से होते हुए चलते गए। रास्ते में एक अँगरेज़ भाईसाब खड़े खड़े गिटार बजा रहे थे और पैसे मांग रहे थे ( माँगना गलत शब्द होगा -कमा रहे थे ) ! माँगना तो भारतीयों के साथ लगाया जाता है न ? वो अँगरेज़ था , उसकी चमड़ी गोरी थी इसलिए वो अँगरेज़ था या अँगरेज़ था इसलिए उसकी चमड़ी गोरी थी ? वो आप जानो !! लेकिन अँगरेज़ गिटार बजा रहा है तो हमें दरियादिली दिखानी ही होती है इसलिए वहां 100 -100 के नोट भी उसे देने में न हिचक न सिद्धांत। उसे भिखारी भी नहीं कहेंगे , भिखारी शब्द तो भारतीय के साथ लगाएंगे न !! उसे तो कलाकार कहा जाएगा कलाकार !! क्योंकि वो अँगरेज़ है और उसकी चमड़ी गोरी है ! उसे भिखारी कैसे कहेंगे ? है न !! भिखारी उसे कहते हैं जिसे एक रुपया देते हुए भी हम पचास गालियां दें !! ये तो कलाकार है ! कलाकार !! यू ब्लडी इण्डियन पीपल कांट अंडरस्टैंड थिस थ्योरी ऑफ़ थिंकिंग ! यू ....यू.. कांट डिफ़्फरेंशिएट बिटवीन अ भिखारी एंड ए कलाकार !! यू कॉमन पीपल विल नेवर अंडरस्टैंड दिस !!
भृगु मंदिर चल दिए और आधा घण्टा गुजार के भागसूनाग फॉल चलते हैं। करीब डेढ़ -दो किलोमीटर पैदल पक्का रास्ता है। आप ना भी जाना चाहें तो मंदिर के पास से भी दिखाई देता है ये फॉल लेकिन मैं कहूंगा जाना चाहिए। आराम आराम से हल्की -हल्की चढ़ाई चढ़ते हुए एक घंटे में फॉल तक पहुँच जाएंगे। फॉल उन लोगों को बहुत अच्छा लग सकता है जिन्होंने इससे पहले कोई फॉल नहीं देखा लेकिन क्यूंकि मैंने बहुत सारे और इससे कई गुना बड़े और भी फॉल देखे हैं तो मुझे कुछ ख़ास पसंद नहीं आया लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल नहीं कि फॉल अच्छा नहीं है ! खूबसूरत है और मैक्लोडगंज का फेमस आकर्षण है।
फॉल से लौटते हुए दलाईलामा मंदिर पहुँच गए जो मैक्लोडगंज में धर्मशाला की तरफ से घुसते ही एक नीचे की तरफ जा रही रोड पर है जबकि भागसूनाग फॉल तक जाने के लिए आपको पूरा टाउन पार करके जाना पड़ता है। दलाईलामा मंदिर की तरफ जो रोड जा रही है उसके दोनों तरफ दुकानें हैं। मुझे लगता है ये दुकानें सिर्फ विदेशियों के लिए ही बनी हैं। 100 खरीददारों में से शायद ही कोई इंडियन होगा उन दुकानों में। अगर कोई भारतीय वहां था भी तो वो बस रंगीन चश्मा या हैट के ही दाम -कीमत पूछना चाहता था। जबकि वहां बुद्ध , गणेश सब बिकने के लिए रखे थे। बिकेंगे , झाड़ पौंछकर ड्रेसिंग रूम में सजेंगे। सही जगह बिठाया जा रहा है भगवान को !!
तीन बजने को हैं तो अब धर्मशाला के लिए निकल चलो। बस पकड़ी और साढ़े चार बजे धर्मशाला के बस स्टैंड से अपना सामान उठाते हुए हिमाचल के एकमात्र स्टेडियम और धर्मशाला के बेहद खूबसूरत आकर्षण क्रिकेट स्टेडियम को देखने दौड़ चले। टिकट लगता है यार उसमें अंदर जाने के लिए। याद नहीं 40 का था या 50 रूपये का। एक ही स्टैंड पब्लिक के लिए खोला गया है जिसकी सीटें टूटी पड़ी हैं। पवेलियन को दूर से देख सकते हैं लेकिन अगर आप वहां हैं और धर्मशाला घूमने गए हैं तो ये जगह जरूर देखिएगा। बहुत ही खूबसूरत स्टेडियम बना है। मैच भले ही कम होते हैं लेकिन परिवार के साथ यहाँ बैठना अच्छा लगेगा।
धर्मशाला से निकलने में ही फायदा है क्यूंकि हमारी ट्रेन है पठानकोट से आज ही रात को ! तो हिमाचल की ये दूसरी यात्रा आज समाप्त करते हैं इस वायदे के साथ कि फिर मिलेंगे जल्दी ही कोई और - कहानी लेकर !! तब तक सभी मित्रों को जय राम जी की !! और चंद्रयान -2 के चन्द्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरने की बहुत बहुत शुभकामनाएं !! जय हिन्द !!
Musician or a Beggar ? |
Bhrigu Mandir : Mcleodganj |
Way to Bhagsunag Fall |
Bhagsunag Fall |
Dalai Lama Mandir Road : Mcleodganj |
Gods are for sell here which one would u pick ? |
Amazing & Beautiful souvenirs |
Inside The Dalai Lama Mandir |
Inside The Dalai Lama Mandir |
Now moving to Dharmshala |
Cricket Stadium in Dharmshala !! It looks most beautiful stadium of India |