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धूप इतनी तेज है कि कुछ कदम चलते ही हालत खराब हो जा रही है और ऐसे में एक पेड़ के नीचे एक 30 -32 साल का व्यक्ति बच्चों के खिलोने और छोटी -मोटी चीज बेच रहा है , मुझे यहां लगभग एक घंटा हो चुका है और मैंने कोई आदमी नहीं देखा यहां आते हुए , न जाते हुए ! क्या बिका होगा इसका ? क्या बिकता होगा ? मैंने 10 रूपये का कुछ लिया , बिना जरुरत के ही। आखिर तक पहुँच गया ऊपर। ऊपर मंदिर के पास एक -दो दुकान हैं पानी- कोल्ड ड्रिंक की , उस दुकान के बाहर ही एक माँ -बेटी सूखे बेर बेच रही हैं। 10 रूपये के ले तो लिए लेकिन ज्यादा स्वादिष्ट नहीं लगे। लू के थपेड़े गाल पर चुम्मी ले रहे हैं बार -बार और गाल लाल हो रहे हैं , ऐसे ही जैसे कभी स्कूल में मास्टर जी ने किये होंगे 😁!! थोड़ा इधर -उधर घूमा , चार पांच पुजारी मंदिर के अंदर आराम फरमा रहे हैं और दूर -दूर तक और कोई नहीं दिखाई दे रहा। यहां से करीब 100 फ़ीट दूर सीता जी की रसोई है उसे देखा , फोटो खींचे और नीचे उतरने लगा तब एक परिवार जाता हुआ मिला। मतलब दो -ढाई घण्टे में कुल चार लोग ! तीन वो , एक मैं। नीचे कई सारी महिलाएं भिक्षा के इंतज़ार में हैं।
Ramghat:
चलो अब वापस चलते हैं रामघाट ! रामघाट , मंदाकिनी नदी के किनारे के जो घाट हैं , उन्हें रामघाट बोलते हैं और ये एक ऐसी जगह है चित्रकूट की, जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होगी जहां तक मैं समझता हूँ। किनारे पर एक से एक सुन्दर मंदिर लेकिन उनके सामने से गुजरते बिजली के तार इन मंदिरों की फोटो लेने पर शोभा बिगाड़ देते हैं। कहते हैं भगवान श्री राम यहीं माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ स्नान के लिए आया करते थे। ऐसा माना जाता है कि रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास जी भी कुछ दिन यहां रहे थे और उन्हें भगवान श्री राम ने माता सीता और लक्ष्मण सहित दर्शन दिए थे। ये तो हुई पुरानी बात लेकिन नई बात ये है कि आप यहां बढ़िया नाव में बैठकर बोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। बाकायदा हर बोट में बिस्तर लगा है और सोफे भी रखे हुए हैं , लेकिन चद्दरों और सोफे की हालत बता रही है कि बस इन चीजों को रखा गया है सजावट के लिए , बहुत बढ़िया तरह से न तो चादर बिछाई गई हैं और न सोफे इस तरह के हैं कि किसी को आकर्षित कर सकें। मैं किसी को दोष नहीं दे रहा क्योंकि इन्हें जितनी आमदनी होती होगी उसी हिसाब से ये अपनी नाव को सजायेंगे भी। अब ये आपके ऊपर भी निर्भर करता है कि आप हमेशा मॉल में ही जाते रहेंगे घूमने के लिए या अपने ग्रामीण भारत के भी दर्शन करना चाहते हैं जिससे उन्हें भी दो पैसे की कमाई हो सके और उनके बच्चों का भी पेट भर सके। मैं धन्य हुआ अपने प्रभु श्री राम के चरणों की धूल को माथे से लगाए कामदगिरि मंदिर की तरफ बढ़ता हूँ !!
Kamadgiri :
शाम घिर आई है लेकिन अँधेरा होने में अभी कुछ वक्त है तो चित्रकूट की सबसे प्रसिद्ध जगह "कामदगिरि मंदिर " देखने का लालच मन में आ गया। हालाँकि ज्यादातर लोग इसे सबसे पहले स्थान पर रखते हैं जब वो चित्रकूट आते हैं तो लेकिन मैंने दूर की जगहों को पहले देखना उचित समझा। आज की आखिरी जगह होगी "कामदगिरि " जहां मैं जाऊँगा। कामदगिरि एक पहाड़ है और उसी के नाम पर मंदिर भी है। रामघाट से करीब चार -पांच किलोमीटर दूर होगा। कामदगिरि एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब होता है : एक ऐसा पहाड़ जहां आपकी हर इच्छा , हर मनोकामना पूर्ण होती है। The Sanskrit word ‘Kamadgiri’ means the mountain which fulfills all yur wishes and desires. The place is believed to have been the abode of Lord Ram, Mata Sita and Laxman Ji during their exile. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्री राम अपने वनवास के समय माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ चित्रकूट में रहे थे तब यहीं उनका ठिकाना हुआ करता था। कामदगिरि को 'कामतानाथ जी " के नाम से भी पुकारा जाता है और कामतानाथ जी , भगवान श्री राम का ही रूप माने जाते हैं। बहुत से श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की 5 किलोमीटर की परिक्रमा भी करते हैं और भरत कूप मंदिर इसी परिक्रमा के रास्ते में पड़ता है , हालाँकि मैं परिक्रमा नहीं कर पाया था तो सटीक जानकारी देना मुश्किल होगा।
तो भक्तो , असली वाले भक्तो हमारी आज की चित्रकूट की कथा यहीं संपन्न होती है। अब हम फिर से रात की ट्रेन से लखनऊ के लिए प्रस्थान करेंगे और फिर वहां से आपको लखनऊ की बात बताएँगे। तो भक्तो , कथा सुनने मतलब पढ़ने आना जरूर !! तो जोर से बोलिये : सियापति राम चंद्र की जय !! जय श्री राम !!
Hanuman Dhara :
गुप्त गोदावरी गुफाओं में घूम -घाम के , चोट खा के बाहर बैठ गया पेड़ों की छाँव में। अप्रैल की तेज़ गर्मी में पेड़ ऐसी ठण्डक दे रहे थे जैसे किसी ने कूलर रख दिया हो सामने ही , AC कहता तो कुछ ज्यादा हो जाता😋 ! आराम मिला तो अपना प्रिय पेय पदार्थ पिया। जी , चाय ! मजा आ गया ! अब अंदर की गर्मी , बाहर की गर्मी का मुकाबला करने को तैयार है ! चल बाबू आगे चल !! चलो , हनुमान धारा चलते हैं ! ज्यादा पता नहीं था कि कैसे और कहाँ से होकर गए ? लेकिन रामघाट पहुंचे थे पहले फिर वहां से ऑटो लिया था। थोड़ा अलग हटकर है हनुमान धारा , लेकिन जगह बढ़िया लगी ! ऐसा तो नहीं कहूंगा कि इससे सुन्दर जगह नहीं देखी लेकिन मन को सुकून देने वाली जगह है।
सामने बहुत सारी सीढ़ियां दिखाई दे रही हैं , इन पर ही चढ़ के जाना है और ऊपर सूरज आज ही अपनी पूरी ताकत दिखा देना चाहता है। आदमी भी कौन सा कम है , उसने भी सूरज की गर्मी से निपटने को कई सारे यंत्र और कई सारे पेय पदार्थ ईजाद कर लिए। इनमें से ही एक कोल्ड ड्रिंक भी है , हालाँकि मेरा प्रिय पेय नहीं है लेकिन पीने से नफरत भी नहीं है। तो एक बड़ा सा घर देखा और उसके बरामदे में सजी दूकान। सजी क्या , सारा सामान इधर -उधर फैला पड़ा था लेकिन उस दुकान में घुसने का मतलब दूसरा था। कोल्ड ड्रिंक तो और भी कई दुकानों में मिल जाती लेकिन एक तो यहां कूलर चल रहा था और कूलर के सामने ही खाट पड़ी थी और खाट पर अमर उजाला !! अगर यही जगह दिल्ली में होती तो करोड़ों की होती लेकिन वहां चित्रकूट में उस घर की मालकिन दुकान चला रही है।..... छोडो यार ! अभी कोल्ड ड्रिंक और ब्रेड पकोड़ों पर concentrate करते हैं। अहाहा... आनंद आ गया और आनंद के साथ -साथ डकार भी चली आई😀 । हरिओम !! श्री राधे !!
अब चलते हैं आगे ! मैं तो खैर सीढ़ियां ही चढ़कर जाऊँगा लेकिन अगर किसी को ऊपर जाने में परेशानी होती है , सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है तो यहीं नीचे ही , जहां से सीढ़ियां शुरू होती हैं वहां कहार (porter ) भी मिल जाते हैं और ले जाने के लिए टोकरी भी। तो बड़े -बुजुर्गों को भी वहां तक पहुँचने में कोई दिक्कत नहीं ! कहते हैं चित्रकूट में आज भी हनुमान जी वास करते हैं जहां भक्तों को दैहिक और भौतिक ताप से मुक्ति मिलती है। कारण यह है कि यहीं पर भगवान राम की कृपा से हनुमान जी को उस ताप से मुक्ति मिली थी जो लंका दहन के बाद हनुमान जी को कष्ट दे रहा था।
इस विषय में एक रोचक कथा है कि, हनुमान जी ने प्रभु राम से कहा, लंका जलाने के के बाद शरीर में तीव्र अग्नि बहुत कष्ट दे रही है। तब श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा कि-चिंता मत करो। चित्रकूट पर्वत पर जाओ। वहां अमृत तुल्य शीतल जलधारा बहती है। उसी से कष्ट दूर होगा। ये वही हनुमान धारा है।
सामने बहुत सारी सीढ़ियां दिखाई दे रही हैं , इन पर ही चढ़ के जाना है और ऊपर सूरज आज ही अपनी पूरी ताकत दिखा देना चाहता है। आदमी भी कौन सा कम है , उसने भी सूरज की गर्मी से निपटने को कई सारे यंत्र और कई सारे पेय पदार्थ ईजाद कर लिए। इनमें से ही एक कोल्ड ड्रिंक भी है , हालाँकि मेरा प्रिय पेय नहीं है लेकिन पीने से नफरत भी नहीं है। तो एक बड़ा सा घर देखा और उसके बरामदे में सजी दूकान। सजी क्या , सारा सामान इधर -उधर फैला पड़ा था लेकिन उस दुकान में घुसने का मतलब दूसरा था। कोल्ड ड्रिंक तो और भी कई दुकानों में मिल जाती लेकिन एक तो यहां कूलर चल रहा था और कूलर के सामने ही खाट पड़ी थी और खाट पर अमर उजाला !! अगर यही जगह दिल्ली में होती तो करोड़ों की होती लेकिन वहां चित्रकूट में उस घर की मालकिन दुकान चला रही है।..... छोडो यार ! अभी कोल्ड ड्रिंक और ब्रेड पकोड़ों पर concentrate करते हैं। अहाहा... आनंद आ गया और आनंद के साथ -साथ डकार भी चली आई😀 । हरिओम !! श्री राधे !!
अब चलते हैं आगे ! मैं तो खैर सीढ़ियां ही चढ़कर जाऊँगा लेकिन अगर किसी को ऊपर जाने में परेशानी होती है , सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है तो यहीं नीचे ही , जहां से सीढ़ियां शुरू होती हैं वहां कहार (porter ) भी मिल जाते हैं और ले जाने के लिए टोकरी भी। तो बड़े -बुजुर्गों को भी वहां तक पहुँचने में कोई दिक्कत नहीं ! कहते हैं चित्रकूट में आज भी हनुमान जी वास करते हैं जहां भक्तों को दैहिक और भौतिक ताप से मुक्ति मिलती है। कारण यह है कि यहीं पर भगवान राम की कृपा से हनुमान जी को उस ताप से मुक्ति मिली थी जो लंका दहन के बाद हनुमान जी को कष्ट दे रहा था।
इस विषय में एक रोचक कथा है कि, हनुमान जी ने प्रभु राम से कहा, लंका जलाने के के बाद शरीर में तीव्र अग्नि बहुत कष्ट दे रही है। तब श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा कि-चिंता मत करो। चित्रकूट पर्वत पर जाओ। वहां अमृत तुल्य शीतल जलधारा बहती है। उसी से कष्ट दूर होगा। ये वही हनुमान धारा है।
धूप इतनी तेज है कि कुछ कदम चलते ही हालत खराब हो जा रही है और ऐसे में एक पेड़ के नीचे एक 30 -32 साल का व्यक्ति बच्चों के खिलोने और छोटी -मोटी चीज बेच रहा है , मुझे यहां लगभग एक घंटा हो चुका है और मैंने कोई आदमी नहीं देखा यहां आते हुए , न जाते हुए ! क्या बिका होगा इसका ? क्या बिकता होगा ? मैंने 10 रूपये का कुछ लिया , बिना जरुरत के ही। आखिर तक पहुँच गया ऊपर। ऊपर मंदिर के पास एक -दो दुकान हैं पानी- कोल्ड ड्रिंक की , उस दुकान के बाहर ही एक माँ -बेटी सूखे बेर बेच रही हैं। 10 रूपये के ले तो लिए लेकिन ज्यादा स्वादिष्ट नहीं लगे। लू के थपेड़े गाल पर चुम्मी ले रहे हैं बार -बार और गाल लाल हो रहे हैं , ऐसे ही जैसे कभी स्कूल में मास्टर जी ने किये होंगे 😁!! थोड़ा इधर -उधर घूमा , चार पांच पुजारी मंदिर के अंदर आराम फरमा रहे हैं और दूर -दूर तक और कोई नहीं दिखाई दे रहा। यहां से करीब 100 फ़ीट दूर सीता जी की रसोई है उसे देखा , फोटो खींचे और नीचे उतरने लगा तब एक परिवार जाता हुआ मिला। मतलब दो -ढाई घण्टे में कुल चार लोग ! तीन वो , एक मैं। नीचे कई सारी महिलाएं भिक्षा के इंतज़ार में हैं।
Ramghat:
चलो अब वापस चलते हैं रामघाट ! रामघाट , मंदाकिनी नदी के किनारे के जो घाट हैं , उन्हें रामघाट बोलते हैं और ये एक ऐसी जगह है चित्रकूट की, जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होगी जहां तक मैं समझता हूँ। किनारे पर एक से एक सुन्दर मंदिर लेकिन उनके सामने से गुजरते बिजली के तार इन मंदिरों की फोटो लेने पर शोभा बिगाड़ देते हैं। कहते हैं भगवान श्री राम यहीं माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ स्नान के लिए आया करते थे। ऐसा माना जाता है कि रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास जी भी कुछ दिन यहां रहे थे और उन्हें भगवान श्री राम ने माता सीता और लक्ष्मण सहित दर्शन दिए थे। ये तो हुई पुरानी बात लेकिन नई बात ये है कि आप यहां बढ़िया नाव में बैठकर बोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। बाकायदा हर बोट में बिस्तर लगा है और सोफे भी रखे हुए हैं , लेकिन चद्दरों और सोफे की हालत बता रही है कि बस इन चीजों को रखा गया है सजावट के लिए , बहुत बढ़िया तरह से न तो चादर बिछाई गई हैं और न सोफे इस तरह के हैं कि किसी को आकर्षित कर सकें। मैं किसी को दोष नहीं दे रहा क्योंकि इन्हें जितनी आमदनी होती होगी उसी हिसाब से ये अपनी नाव को सजायेंगे भी। अब ये आपके ऊपर भी निर्भर करता है कि आप हमेशा मॉल में ही जाते रहेंगे घूमने के लिए या अपने ग्रामीण भारत के भी दर्शन करना चाहते हैं जिससे उन्हें भी दो पैसे की कमाई हो सके और उनके बच्चों का भी पेट भर सके। मैं धन्य हुआ अपने प्रभु श्री राम के चरणों की धूल को माथे से लगाए कामदगिरि मंदिर की तरफ बढ़ता हूँ !!
Kamadgiri :
शाम घिर आई है लेकिन अँधेरा होने में अभी कुछ वक्त है तो चित्रकूट की सबसे प्रसिद्ध जगह "कामदगिरि मंदिर " देखने का लालच मन में आ गया। हालाँकि ज्यादातर लोग इसे सबसे पहले स्थान पर रखते हैं जब वो चित्रकूट आते हैं तो लेकिन मैंने दूर की जगहों को पहले देखना उचित समझा। आज की आखिरी जगह होगी "कामदगिरि " जहां मैं जाऊँगा। कामदगिरि एक पहाड़ है और उसी के नाम पर मंदिर भी है। रामघाट से करीब चार -पांच किलोमीटर दूर होगा। कामदगिरि एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब होता है : एक ऐसा पहाड़ जहां आपकी हर इच्छा , हर मनोकामना पूर्ण होती है। The Sanskrit word ‘Kamadgiri’ means the mountain which fulfills all yur wishes and desires. The place is believed to have been the abode of Lord Ram, Mata Sita and Laxman Ji during their exile. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्री राम अपने वनवास के समय माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ चित्रकूट में रहे थे तब यहीं उनका ठिकाना हुआ करता था। कामदगिरि को 'कामतानाथ जी " के नाम से भी पुकारा जाता है और कामतानाथ जी , भगवान श्री राम का ही रूप माने जाते हैं। बहुत से श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की 5 किलोमीटर की परिक्रमा भी करते हैं और भरत कूप मंदिर इसी परिक्रमा के रास्ते में पड़ता है , हालाँकि मैं परिक्रमा नहीं कर पाया था तो सटीक जानकारी देना मुश्किल होगा।
तो भक्तो , असली वाले भक्तो हमारी आज की चित्रकूट की कथा यहीं संपन्न होती है। अब हम फिर से रात की ट्रेन से लखनऊ के लिए प्रस्थान करेंगे और फिर वहां से आपको लखनऊ की बात बताएँगे। तो भक्तो , कथा सुनने मतलब पढ़ने आना जरूर !! तो जोर से बोलिये : सियापति राम चंद्र की जय !! जय श्री राम !!
गुप्त गोदावरी से निकलते हैं अभी....... |
हनुमान धारा |
हनुमान धारा..... |
बड़े - बुजुर्गों के लिए दिक्कत नहीं है, इनका फायदा उठाइये |
सीढ़ियां हालत खराब कर देती हैं |
मित्रो लखनऊ में मिलेंगे जल्दी ही: