जब भी कभी हम दिल्ली के विषय में या वहाँ घूमने , देखने की जगहों के विषय में बात करते हैं तब बस कुछ गिने चुने नाम ही जहन में आते हैं जैसे लाल किला , जंतर मंतर , क़ुतुब मीनार ! लेकिन सच कहा जाए तो दिल्ली में देखने को इतना कुछ है कि आप विस्मित हो जायेंगे कि अरे ! इतना सब कुछ है यहाँ , इसके बारे में तो हमें पता ही नहीं था ! लेकिन इसमें आपकी कोई गलती नहीं है , असल में हमारा ध्यान उधर ही जाता है जिधर सरकार चाहती है ! मतलब जिन जगहों को सरकार ने सुधार दिया है , जहां व्यवस्था कर दी गयी है , जो प्रचलित हैं हम वहीँ तक जा पाते हैं ! लेकिन अगर आप इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो एक बड़ा खजाना आपके हाथ लगेगा ऐसी जगहों का जहाँ आप एक बार जरुर जाना चाहेंगे ! मैंने कोशिश करी है आपको ऐसी ही जगहों के विषय में बताने की और आपको वहाँ तक इंटरनेट के माध्यम से ले जाने की ! आइये चलते हैं:
महाराज अग्रसेन की बावली :
पहले जमाने में राजा महाराजा पानी इकठ्ठा करने के लिए सीढ़ी दार कुँए बनवाया करते थे जिनमें पानी को महीनों तक सुरक्षित रखा जा सके । इन्हीं सीढ़ीदार कुओं को बावली कहा जाता है । पश्चिम भारत में यानि राजस्थान और गुजरात में बहुत सी बावली आज भी हैं लेकिन दिल्ली में बहुत कम ! दिल्ली में खारी बावली का नाम प्रचलित है , लेकिन दरयागंज के इलाके में स्थित यह बावली अब गायब है ! लेकिन नाम चलता है खारी बावली ! अब वहाँ प्रकाशकों की दुकानें और प्रतिष्ठान हैं ! एक है राजाओं की बावली जो दिल्ली के मेहरौली इलाके में है , इसको बहुत ढूँढा लेकिन असफल रहा । बस फिर एक ही बावली मिली , महाराज अग्रसेन की बावली ! ऐसा कहा जाता है कि इस बावली को महाराज अग्रसेन (उग्रसेन भी कहा जाता है ) ने बनवाया था और चौदहवीं शताब्दी में अग्रवाल समाज ने इसका पुनुर्द्धार कराया !
इस बावली तक पहुँचने के लिए बहुत बेहतर रास्ता मण्डी हाउस मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलकर बाराखम्बा रोड से निकलने वाले हैली रोड पर है । यह पूरा इलाका नई दिल्ली के कनॉट प्लेस के आसपास का है । नजदीक ही जंतर मंतर है इसलिए ढूंढने में ज्यादा परेशानी नहीं होती । सुन्दर जगह है आप को अच्छा लगेगा वहाँ पहुंचकर , हालाँकि आजकल ये ऐतिहासिक स्थल से ज्यादा लव पॉइंट ज्यादा मालुम पड़ता है ।
नेशनल म्यूजियम ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री :
मण्डी हाउस मेट्रो स्टेशन के ही नजदीक एक और स्थान है जो आपका मन मोह लेगा ! ये है नेशनल म्यूजियम ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री । ये म्यूजियम और दूसरे म्यूजियम से कुछ हटकर है । इस म्यूजियम में आप जीवन से जुड़े तथ्य और आस पास की जलवाऊ , पशु पक्षियों से मानव के रिश्ते को बहुत ही सटीक तरीके से प्रस्तुत किया गया है ! इस म्यूजियम में वृक्ष बचाने के लिए हुए चिपको आंदोलन को भी चित्रों के माध्यम से बेहतर तरीके से परिभाषित किया है !
मण्डी हाउस से निकलकर आप जैसे ही तानसेन मार्ग पर पहुंचेंगे तो सामने ही आपको फिक्की बिल्डिंग दिखाई देगी , उसी बिल्डिंग में स्थित है ये अपने तरह का विचित्र म्यूजियम । इस म्यूजियम को के के बिरला ने पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कहने पर बनवाया ! असल में सन 1972 ईस्वी में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी , आज़ादी के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में कुछ विशेष करना चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने भारतीय जीवन और भारतीय व्यक्ति के जंगल और वन्य जीवों से सम्बन्ध को दिखाने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू करने के विषय में सोचा और उसका प्रतिफल है ये आज का म्यूजियम !
ज़हाज महल :
ज़हाज़ महल वास्तव में मुसाफिरों के लिए एक सराय के रूप में बनाया गया था ! महरौली इलाके में स्थित ज़हाज़ महल को 1452 से लेकर 1526 ईस्वी तक चले लोधी सल्तनत में बनवाया गया ! उस वक्त अफगानिस्तान , अरब , इराक आदि मुस्लिम देशों से हिन्दुस्तान आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए रुकने के स्थान के रूप में बनवाया गया जहाज महल , इसके चारों ओर बने जलाशय में इसकी परछाई जहाज की तरह की दीखती थी , इसलिए इसे जहाज महल कहा गया ।
ज़हाज़ महल , हर साल अक्टूबर में होने वाले प्रोग्राम "फूल वालों की सैर " के लिए भी विख्यात है । इस कार्यक्रम में फूल विक्रेता फूलों से बने पंखों को सजाकर महरौली से यात्रा प्रारम्भ करते हैं और सर्वप्रथम योगमाया के मंदिर में श्रद्धा पूर्वक फूलों से बना पंखा अर्पित करते हैं, वहाँ से चलने के बाद ये यात्रा हज़रत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मज़ार पर चादर और फूल अर्पित करने के साथ समाप्त होती है ! इस यात्रा को अकबर शाह द्वितीय ने सन 1820 में शुरू कराया लेकिन सन 1942 में अंग्रेज़ों ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया ! फिर सन 1961 ईस्वी में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस प्रथा को दोबारा शुरू किया जो बदस्तूर जारी है । इस कार्यक्रम में अक्टूबर में विभिन्न प्रदेशों के लोक कलाकार अपनी अपनी प्रस्तुति जैसे नृत्य , नाटक और कवालियों का कार्यक्रम पेश करते हैं !
इस जगह तक आसानी से पहुँचा जा सकता है ! राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से येलो लाइन जो गुडगाँव तक जाती है , वो मेट्रो लीजिये और छतरपुर मेट्रो स्टेशन उतरिये ! लगभग 10 मिनट की वाल्किंग डिस्टेंस पर है ज़हाज़ महल ! इस जगह को अंधेरिया मोड़ भी कहते हैं !
तो आज बस इतना ही ! कुछ और जगहें आएँगी इस लिस्ट में थोडा इंतज़ार करिये !
दिल्ली के आईटीओ पर लगी हनुमान जी की मूर्ति |
महाराज अग्रसेन की बावली |
महाराज अग्रसेन की बावली |
महाराज अग्रसेन की बावली |
महाराज अग्रसेन की बावली |
नेशनल म्यूजियम ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री में एक सींग वाला गैंडा |
जानवरों की खाल से बने कपडे , जिन्हें पहनकर हम इतराते हैं |
अपने स्वार्थ के लिए हमने पेड़ों को भी नहीं बक्शा |
चिपको आंदोलन को दिखाते चित्र |
चिपको आंदोलन को दिखाते चित्र |
ज़हाज महल |
ज़हाज महल |
ज़हाज महल आगे ज़ारी है ! यहाँ क्लिक करें |