इस ब्लॉग में आप भारत वर्ष के नए नए स्थानों के विषय में लगातार पढ़ेंगे | घुमक्कडी का मतलब होता है बिना कुछ सोचे समझे झोला उठाये कहीं भी निकल पड़ना ! कहीं भी खा लेना और कहीं भी सो जाना ! इसलिए जिन्हें डनलप के गद्दे पर ही नींद आने की आदत हो गयी है वो घुमक्कडी का ख्वाब न पालें , हाँ वो टूरिस्ट जरूर हो सकते हैं ! तो आइये , देश को करीब से देखिये और महसूस करिये ....मेरे साथ !
मान के चलिए कि अन्ना हजारे जी
के आन्दोलन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया और लोगों के दिमाग बदलने लग गए
| लोगों ने रिश्वत लेना और देना बंद कर दिया और कमीशन से तौबा कर ली ……….|
नेताओं और अधिकारियों के मन ने उनको धिक्कारना शुरू कर दिया | घर में
रिश्वत के पैसे लाने पर बीवी और बच्चों ने धिक्कारना शुरू कर दिया | मतलब
ये कि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की आत्मा ने उन्हें कचोटना शुरू कर दिया ,
उनका जमीर जाग गया तो ……………? सोचिये कितना बड़ा नुक्सान हो जायेगा अगर ऐसा
हो गया तो ? फिल्म वालों के लिए वैसे ही कहानी का अकाल पड़ा रहता है हर
तीसरी फिल्म तो भ्रष्टाचार पर होती है , भ्रष्टाचार नहीं रहेगा तो फिर
कहानी कैसे मिलेगी ? सोचिये उस बेचारे मुसद्दी का जिसने ऑफिस ऑफिस खेलते
खेलते अपने बच्चों को पाला और उस को हीरो भी बना दिया | सुनते हैं अब वही
मुसद्दी एक फिल्म ” मौसम” भी बना रहा है | आप ही बताइए अगर भ्रष्टाचार नाम
का धंधा न रहा होता तो ये बेचारे कैसे जीवन यापन करते ? और अपना वो राम
गोपाल वर्मा , जानते तो हैं न ? वो तो कहीं भुट्टा ही बेच रहा होता | फिर
भी आप कहते हैं कि इस भ्रष्टाचार को ख़तम करें | काहे भाई ? काहे औरों के
पेटों पर लात मार देना चाहते हैं | तनिक उनका भी तो सोचिये जो “कुछ” पाने
के चक्कर में नेता जी के इधर उधर लगे रहते हैं ? भले ही दुनिया उन्हें चमचा
कहे , मगर उन्हें भी तो अपना घर चलाना है कि नाही ? अगर नेता जी को कहीं
से कमीशन या नजराना नहीं मिलेगा तो वो अपने चमचों को क्या देंगे ? अगर
चमचों को चासनी नहीं मिलेगी तो वो फिर उधर क्यों मुहं मारने जायेंगे ? और
जो वो मुहं मारने वहां नहीं जायेंगे तो नेता जी को पूछेगा कौन ? फिर कैसी
राजनीति और काहे के लिए राजनीति ? बिना किसी फायदे के लिए कोई कुछ करता है
क्या ? अब वो भगवान श्री कृष्ण तो हैं नहीं कि सोच लें ” कर्म किये जा फल
कि इच्छा मत कर |”
इस भ्रष्टाचार के खेल से जाने कितनो के घर चलते हैं | टी.वी. की टी.आर.पी.
से रिपोर्टर की तनख्वाह बढती है , अखबार के समाचारों से पत्रकारों का घर
चलता है | कुछ नहीं तो कम से कम हम जैसे तुच्छ साहित्यकारों के बारे में ही
सोचिये जिन्हें भ्रष्टाचार पर लिखने से कुछ संतुष्टि मिल जाती है |
तो भैया जैसा चल रहा है चलने
देने में ही क्या बुराई है ? जब हमारे इतने गुनी और योग्य प्रधानमंत्री को
इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती तो आप काहे खामखाँ परेशान होते हैं |
ओम प्रकाश आदित्य जी की एक कविता , इस लेख को कुछ और बड़ा करने और रोचक बनाने के लिए साथ में दे रहा हूँ !
इधर भी गधे हैं , उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूँ , गधे ही गधे हैं ||
गधे हँस रहे हैं , आदमी रो रहा है
हिंदुस्तान में ये क्या हो रहा है ? ये दिल्ली ये पालम गधों के लिए है
ये संसार सालम गधों के लिए है ||
मुझे माफ़ करना मैं भटका हुआ था
वो ठर्रा था जो भीतर अटका हुआ था !!